लेखनी कविता - चित्राधार -जयशंकर प्रसाद

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चित्राधार -जयशंकर प्रसाद कानन-कुसुम - पुन्य औ पाप न जान्यो जात।  सब तेरे ही काज करत हैं और न उन्हे सिरात ॥  सखा होय सुभ सीख देत कोउ काहू को मन ...

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